मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

ज़रा सोचो, हम ना होते तो क्या होता, 
कौन तुम्हारी गंदगी, अपने सर पे ढोता..???

नाले के पास बसी, बस्ती का मैं बाशिंदा हूँ, 
तुमसे नहीं मैं तो, जिंदगी से भी शर्मिन्दा हूँ,
समझ नहीं आता मुझे, क्यूँकर मैं ज़िंदा हूँ ,
मैं नहीं होता तो कौन तुम्हारी हिकारत सहता ..

मुझे मेरे काम का नहीं कोई भी इनाम चाहिए,
बस जब तुम्हें मैं देखूँ, तो इक मुस्कान चाहिए ,
मेरे बच्चों को भी, सर पे छोटा सा मकान चाहिए,
काश मैं भी अपने बच्चों को पड़ा-लिखा कहता ..

बस इस सोच में रहता हूँ, ये समाज कब बदलेगा, 
मैं भी हूँ इंसान एक, ये बात कोई कब समझेगा,
कब तक मेरा बच्चा, तुम्हारे बच्चों की उतरन पहनेगा,
मुझे दया नहीं, भीख नहीं, बराबरी का मान तो देता ... 


ज़रा सोचो हम ना होते तो क्या होता .......??????????? ............. नैनी ग्रोवर 





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें