ऐ रात तू मेरी प्यारी सखी,
तनहा गुमसुम लगती है भली__
तुझमें मुझमें कोई फर्क नहीं,
तू अर्श नहीं, मैं फर्श नहीं
मेरे जैसी ही लगती है तू,
जब शाम हुई तो बिखर गई__
तू मांग ले मुझसे, दर्द कोई,
मैं मांग लूँ, तुझसे तन्हाई,
तुझको भी दिन की आस नहीं,
मैं भी उस हद्द से गुज़र गई ___!!
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