मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

ऐ रात तू मेरी प्यारी सखी, 
तनहा गुमसुम लगती है भली__

तुझमें मुझमें कोई फर्क नहीं, 
तू अर्श नहीं, मैं फर्श नहीं 
मेरे जैसी ही लगती है तू,
जब शाम हुई तो बिखर गई__

तू मांग ले मुझसे, दर्द कोई,
मैं मांग लूँ, तुझसे तन्हाई, 
तुझको भी दिन की आस नहीं,
मैं भी उस हद्द से गुज़र गई ___!!

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