शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2013

अब भी संभल जाएँ, अब भी समझ जाएँ,
कहीं ऐसा न हो, बूँद-बूँद जल को तरस जाएँ ..

कर चुके बर्बादी बहुत, कितना सहेगी यह धरती,
खोलो आँखें गौर से देखो, शायद आँखें बरस जाएँ ...!!

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर पंक्तियाँ,
    बहुत बढ़िया प्रस्तुतीकरण.
    बहुत बहुत बधाई आपको नैनी जी.

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद वीरेंदर सर जी ..

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