माना के हादसों में पली है, मेरी मुंबई,
फिर भी फूलों सी महक देती है, मेरी मुंबई...
ना जाने कितने लोग आते हैं, पनाह लेने,
सबको सीने से लगा लेती है, मेरी मुंबई ...
खा कर आतंक के ज़ख़्म भी, अपने सीने पर,
उसी रफ़्तार से चलती रहती है, मेरी मुंबई ...
थके-हारे चेहरों की, मुस्कान है ये, चौपाटी,
रातों को जश्न बना देती है, मेरी मुंबई ..!!
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