दर्द कलम के
शनिवार, 2 फ़रवरी 2013
मैं पड़ लूँ कुरान, तू पड़ गीता, क्या फर्क नज़र कुछ आता है,
क्यूँ जुदा-जुदा रहें हम दोनों, क्या मज़हब यही सिखाता है ...!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें